रूस-यूक्रेन जंग अगर मोदी की जंग है, तो ट्रंप उसे रुकवा क्यों नहीं पा रहे हैं? If the Russia-Ukraine war is Modi’s war, then why is Trump unable to stop it?

रूस-यूक्रेन जंग अगर मोदी की जंग है, तो ट्रंप उसे रुकवा क्यों नहीं पा रहे हैं? If the Russia-Ukraine war is Modi’s war, then why is Trump unable to stop it?

रवि पाराशर


जब कोई तथाकथित या वास्तव में जबर आदमी अपना कोई एकतरफा फैसला किसी पर थोपता है और उसे तगड़ा पलटवार झेलना पड़ता है, तो वह अपनी खिसियाहट जताने के लिए तरह-तरह की अजीबोगरीब भंगिमाएं अपनाने लगता है।

ऐसा ही कुछ अमेरिका के साथ हो रहा है। भारत पर अमेरिका की तरफ़ से 50 प्रतिशत टैरिफ लगने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का फोन तक उठाना बंद कर दिया और विकासशील दुनिया में बाजार खंगालने शुरू कर दिए, तो ट्रंप प्रशासन ऐसे बयान जारी कर रहा है, जिन पर सहज कुटिलता से मुस्कुराया जा सकता है। गौरतलब है कि ट्रंप का फोन मोदी के नहीं उठाने की खबर भारत नहीं, जर्मनी का एक प्रमुख अखबार छापता है और अमेरिका की तरफ से उसका कोई खंडन अभी तक नहीं किया गया है।

टैरिफ वॉर छेड़ने पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद अब राष्ट्रपति ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो कह रहे हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई प्रधानमंत्री नरेंद्र ‘मोदी की जंग है’। वैसे यह नई बात नहीं है। राष्ट्रपति ट्रंप भी प्रकारांतर से यही बात कहते रहे हैं। लेकिन नवारो ने रूस-यूक्रेन जंग को ‘मोदी की जंग’ कह कर आरोप को नई धार दे दी है। असल में ट्रंप और अब उनके व्यापार सलाहकार यह कह रहे हैं कि रूस से काफी तादाद में कच्चा तेल खरीद कर भारत जो पैसे उसे देता है, उससे पुतिन को यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई जारी रखने में अच्छी-खासी माली इमदाद मिल रही है। क्या ट्रंप और उनके दरबारियों को यह बात नहीं पता है कि कई यूरोपीय देश भी रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदते हैं। क्या रूस उन्हें मुफ्त में ईंधन दे रहा है? नहीं, तो ट्रंप या नवारो ऐसा आरोप लगाने की हिम्मत क्यों नहीं रखते कि यूरोपीय देशों से तेल के बदले मिल रहे पैसे से रूस को यूक्रेन पर हमले में मदद मिल रही है?

ब्लूमबर्ग टीवी को दिए इंटरव्यू में नवारो ने यह भी कहा है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो अमेरिका उस पर लगाए गए टैरिफ में 25 फीसदी की कटौती कर सकता है। उनका दावा है कि रूस और यूक्रेन के बीच अमन की राह नई दिल्ली से हो कर गुजरती है। मतलब हुआ कि भारत रूस से सस्ता नहीं, बल्कि अमेरिका से महंगा तेल खरीदे और अपनी जनता के सिर पर और महंगाई थोप दे। नहीं तो अमेरिका टैरिफ में बड़ा इजाफा कर भारत की जनता को महंगाई से जूझने पर मजबूर कर देगा! कुल मिला कर लगता ऐसा है कि भारत के अडिग रवैये के बाद अब अमेरिका बौखलाहट की तरफ बढ़ रहा है।

व्यापार सलाहकार पीटर नवारो के बयान से कुछ पहले ही टैरिफ लागू होने के दिन ही अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स बिजनेस चैनल पर कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते भले ही जटिल हों, लेकिन दोनों देशों के बीच सहमति की गुंजाइश बनी हुई है। इशारों में ही बेसेंट ने कह भी कहा कि न सिर्फ रूस से तेल खरीदने की वजह से, बल्कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील में देरी की वजह से भी दोनों देशों के बीच तनाव कायम है। बेसेंट का कहना था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। दोनों को आखिरकार साथ आना ही है। इस तरह हाथ मरोड़ कर दोस्ती का दम भला कौन भरता है?

अमेरिका को अच्छी तरह पता चल गया होगा कि भारत 40 देशों से खास संपर्क की योजना की जमीन पर मजबूती से चल पड़ा है, ताकि कपड़ों के निर्यात को बढ़ावा मिल सके। इन देशों का कपड़ों और परिधानों का इंपोर्ट 590 अरब डॉलर से ज्यादा है। इसमें अभी भारत की हिस्सेदारी केवल छह प्रतिशत है। ऐसे में अगर भारत इस दिशा में कामयाब होता है, तो अमेरिका को तगड़ा झटका लग सकता है।

वैसे अगर रूस-यूक्रेन जंग ‘मोदी की जंग’ है, तो राष्ट्रपति ट्रंप उसे रुकवा क्यों नहीं देते? भारत और पाकिस्तान के बीच जंग रुकवाने का श्रेय तो उन्होंने धड़ल्ले से करीब 30 बार लिया था। दम है, तो पुतिन के हाथ बांध कर दिखा दीजिए।

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