Israel’s blunt stand on Palestine, Afghanistan clashes with Trump over Bagram airbase फिलिस्तीन पर इजराइल की दो टूक, बगराम एयरबेस को लेकर अफगानिस्तान की ट्रंप से ठनी

Israel’s blunt stand on Palestine, Afghanistan clashes with Trump over Bagram airbase फिलिस्तीन पर इजराइल की दो टूक, बगराम एयरबेस को लेकर अफगानिस्तान की ट्रंप से ठनी
रवि पाराशर
जैसा कि अपेक्षित था इजराइल ने ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की तरफ से फिलिस्तीन को देश के तौर पर मान्यता दिए जाने का कड़ा विरोध किया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने आरोप लगा दिया है कि तीनों देश हमास को इनाम दे रहे हैं। नेतन्याहू ने कहा कि ये देश भूल गए हैं कि हमास ने इजरायल में किस तरह से हमले किए थे। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की इस दरियादिली से फिलिस्तीनी गुट हमास का हौसला बढ़ जाएगा।
’आतंक को इनाम’
प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने साफ-साफ कहा है कि जॉर्डन नदी के पश्चिम में फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना नहीं होगी। विदेशी लोग हमास को सम्मानित कर रहे हैं लेकिन वो कामयाब नहीं होंगे। नेतन्याहू पहले भी कह चुके हैं कि ऐसा कदम ‘आतंक को इनाम’ देने जैसा है। अमेरिका भी नहीं चाहता कि फिलिस्तीन को देश का राजनयिक दर्जा दिया जाए।
’आतंक को इनाम नहीं, लोकतंत्र को बढ़ावा’
उधर, मान्यता का फैसला कर चुके ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने कहा है कि फिलिस्तीन के भविष्य में हमास की कोई जगह नहीं होगी। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने भी साफ किया है कि यह फैसला हमास के लिए इनाम नहीं है, बल्कि इससे फिलिस्तीन में लोकतंत्र को बढ़ावा मिलेगा। ऑस्ट्रेलिया भी कुछ इस तरह के ही तर्क दे रहा है।
केंद्र में अमेरिका का अड़ियल रवैया
बहुध्रुवीय विश्व में कूटनय के नए-नए समीकरण देखने को मिल रहे हैं, तो यह हैरत की बात नहीं होनी चाहिए। लेकिन एक बात साफ नजर आ रही है कि इन बदलते समीकरणों के केंद्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अड़ियल रवैये से उपजी प्रतिक्रिया जरूर काम कर रही है।
रूस ने दी तालिबान को मान्यता
हाल ही में रूस ने अफगानिस्तान के नए राजदूत के परिचय पत्र स्वीकार कर उसे देश के तौर पर मान्यता दे दी थी। रूस दुनिया में पहला देश है, जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी है। फैसले की जानकारी देते हुए रूस के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया कि उसे अफगानिस्तान के साथ संबंध विकसित करने की अच्छी संभावनाएं दिख रही हैं और वह सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी और नशीली दवाओं के अपराधों से निपटने में काबुल का समर्थन करना जारी रखेगा।
अकेला नहीं है रूस
जाहिर है कि जब कोई फैसला लीक से हट कर किया जाता है, तो उसके पक्ष में सकारात्मक तर्क देने जरूरी हो जाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के चार साल बाद अचानक रूस को उसके साथ संबंध विकसित करने का खयाल क्यों आया है? हालांकि रूस अकेला नहीं है, जो तालिबान से नजदीकी बढ़ा रहा है। क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले चीन, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान ने तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता का ऐलान भले ही न किया हो, काबुल में अपने-अपने राजदूत तो तैनात कर ही दिए हैं।
भारत भी सकारात्मक
इधर, भारत भी तालिबान सरकार को मान्यता दिए बिना उसके साथ सकारात्मक संबंधों का ही पक्षधर है। भारत ने वहां बहुत सा निवेश कर रखा है और हम नहीं चाहेंगे कि तालिबान चीन और पाकिस्तान के ही इशारों पर नाचता रहे। इस समय अफगानिस्तान में सकारात्मक दखल भारत के लिए जरूरी है। यही कारण है कि हाल के दिनों में अफगानिस्तान सरकार के साथ भारत सरकार ने सीमित संपर्क कायम किए हैं।
ट्रंप की बगराम एयरबेस पर नजर
रूस, चीन, ईरान, पाकिस्तान, सऊदी अरब और भारत ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। वे साल 2021 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अफगानिस्तान छोड़ने के फैसले की आलोचना कई बार कर चुके हैं। अब वे बगराम एयरबेस पर फिर से नियंत्रण कायम करना चाहते हैं, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं है।
तालिबान को ट्रंप की धमकी
हाल ही में अपने ब्रिटेन दौरे के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वे बगराम एयरबेस पर नियंत्रण के लिए अफगानिस्तान से बात कर रहे हैं। ट्रंप ने तालिबान को धमकाते हुए कहा कि अगर वह ऐसा नहीं करता, तो उसे पता चल जाएगा कि वे क्या करने वाले हैं। ट्रंप ने ट्रुथ पर लिखा कि “अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को बनाने वाले, यानी अमेरिका को वापस नहीं करता है, तो बुरी बात होगी।”
तालिबान तैयार नहीं
साफ है कि ट्रंप बगराम एयरबेस को रूस और ईरान पर पैनी नजर रखने वाले अड्डे के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। यही वजह है कि चीन और तालिबान सरकार ने अमेरिका को चेतावनी दी है। तालिबान ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में विदेशी सैनिकों की मौजूदगी कभी मंजूर नहीं करेगा। तालिबान के अधिकारी जाकिर जलाल ने कहा है कि अफगानिस्तान ने इतिहास में कभी सैन्य उपस्थिति को स्वीकार नहीं किया है और दोहा वार्ता और समझौते के दौरान इस संभावना को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था।
चीन भी तालिबान के साथ
वहीं, चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि क्षेत्र में तनाव और टकराव को बढ़ावा देने का समर्थन नहीं किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि चीन अफगानिस्तान की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है। अफगानिस्तान का भविष्य अफगान लोगों के हाथों में होना चाहिए। लेकिन अमेरिका के अड़ियल रवैये के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अगला कदम क्या होगा?
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