Will you also raise the slogan of I love India along with I love Mohammed? आई लव मोहम्मद के साथ क्या आई लव इंडिया का नारा भी लगाएंगे आप?
Will you also raise the slogan of I love India along with I love Mohammed? आई लव मोहम्मद के साथ क्या आई लव इंडिया का नारा भी लगाएंगे आप?

रवि पाराशर
सोशल या डिजिटल मीडिया के गलत इस्तेमाल से कोई भी बात कितनी बिगड़ सकती है या बिगाड़ी जा सकती है, इसका नया उदाहरण है -आई लव मोहम्मद- बैनर विवाद। विवाद की शुरुआत उत्तर प्रदेश कानपुर से हुई और पुलिस के आला अधिकारियों से साफ-साफ बयान आने के बाद भी कोई मीडिया संस्थान और मुस्लिम धार्मिक संस्थाएं सही बात सामने नहीं रख रही हैं।
पुलिस की बात क्यों नहीं सुनी जा रही है?
उत्तर प्रदेश पुलिस का कहना है कि कानपुर विवाद के बाद जो एफआईआर दर्ज की गई है, उसका आई लव मोहम्मद पोस्टर, बैनर या फ्लैक्स से कोई लेना-देना है ही नहीं। आई लव मोहम्मद बैनर लगाए जाने के विरोध में एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, बल्कि रामनवमी शोभायात्रा गेट के सामने बिना अनुमति बारावफात के रोशनी कार्यक्रम के लिए गेट बनाने के मसले पर हुए विवाद के सिलसिले में की गई है।
नई परंपरा की अनुमति क्यों नहीं ली गई?
अब सवाल यह उठता है कि कानपुर में रावतपुर के सैय्यद नगर में अगर बारावफात के जुलूस के लिए गेट बनाने की परंपरा थी ही नहीं, तो फिर इस बार किस इरादे से ऐसा किया गया? अगर ऐसा करना जरूरी था, तो पुलिस से इसकी अनुमति क्यों नहीं ली गई? चलिए माना कि पुलिस से इजाजत नहीं ली गई, तो आसपास रह रहे हिंदू समाज से तो इस बारे में गेट बनाने से पहले बात कर ही ली जानी चाहिए थी। आप कोई नई परंपरा शुरू करना चाहते हैं, तो भाईचारे का तो ध्यान रखना ही चाहिए।
सोच-समझ कर बनाया गया तिल का ताड़!
अगर आपस में बातचीत हो जाती, तो यह विवाद शुरू ही नहीं होता। आखिर –आई लव मोहम्मद- के बैनर से किसी सनातनी हिंदू को क्या परेशानी हो सकती है? लेकिन अगर इरादा ही विवाद भड़का कर अराजक स्थितियां बनाने का हो, तो…! हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव पैदा करना ही असल इरादा हो, तो…!! ऐसा इसलिए लगता है कि कानपुर में चार सितंबर को सामने आए घटनाक्रम की चिंगारी महीने के आखिर में देशव्यापी हो गई है। जाहिर है कि अराजक तत्वों ने कानपुर को प्रयोगशाला बनाया और हिंदुओं का पवित्र त्योहार नवरात्रि आते-आते सोची-समझी रणनीति के तहत तिल का ताड़ बना दिया गया, राई का पहाड़ बना दिया गया।
क्या हिंदू समाज करेगा प्रतिक्रिया?
भारत के हिंदू समाज में अभी तक तो इस मसले पर कोई व्यापक और सामूहिक प्रतिक्रिया नहीं हुई है, लेकिन आगे भी नहीं होगी, यह कहना मुश्किल है। लेकिन टीवी न्यूज चैनलों की बहसों में शामिल मुस्लिम समाज के कथित स्कॉलर, बहुत से मुस्लिम धार्मिक संगठन और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम इस मामले में जिस तरह शोर-शराबा कर रही है, उससे लगता है कि किसी को मामले की असलियत समझने या सामने लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। सभी आग भड़का कर अपना-अपना उल्लू सीधा करने के अनुचित प्रयासों में जुटे हैं या फिर इस घटनाक्रम के जनकों में शामिल हैं।
अराजक लोगों पर हो कड़ी कार्रवाई
आई लव मोहम्मद के बैनर के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने की सिरे से गलत जानकारी फैला कर मुस्लिम समाज को भड़काने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। क्या ऐसे लोग -आई लव इंडिया- या –आई लव भारत- का नारा बुलंद करेंगे? भारत में भाईचारे की हिमायत करने वाले लोग अब सामने आने से कतरा क्यों रहे हैं?
हिंदू त्योहारी सीजन में कौन बिगाड़ रहा है माहौल?
अब बड़ा सवाल यह है कि हिंदू समाज के प्रमुख त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है, ऐसे में हिंदू-मुस्लिम समाजों के बीच तनाव का वातावरण बनाने से किसे फायदा हो सकता है? जवाब बहुत टेढ़ा नहीं है। ये करतूत देश में सक्रिय कट्टरपंथी, अलगाववादी, नफरतों के सौदागरों, सनातन की सहिष्णुता के शत्रुओं की ही है, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
बड़ी साजिश तो नहीं!
एक और गंभीर प्रश्न यह है कि क्या इस साजिश को बांग्लादेश या फिर नेपाल में हुए घटनाक्रम के छोटे से प्रवेश द्वार की तरह देखा जा सकता है? यदि इसका उत्तर बहुत छोटे से हां में भी मिलता दिखाई देता है, तो देश की तमाम एजेंसियों को और ज्यादा सतर्क हो जाना चाहिए।
जुलूसों में हिंसक नारे क्यों?
मसला सिर्फ कानपुर में हुए विवाद से नहीं जुड़ा है। अगर ऐसा होता, तो फिर देश में बहुत सी जगहों पर बिना पुलिस की अनुमति के निकाले जा रहे उग्र जुलूसों में शामिल कुछ लोग फिलिस्तीन के झंडे लहराते क्यों नजर आते हैं? सभी जगहों पर अराजक जुलूसों में एक जैसे डिजाइन और फॉन्ट वाले बैनर, पोस्टर लहराए जा रहे हैं। बहुत सी जगहों पर सर तन से जुदा के हिंसक नारे लगाए जा रहे हैं। जुलूसों में बच्चों और महिलाओं को ढाल बनाया जा रहा है। यह पैटर्न सामाजिक तौर पर स्वाभाविक विरोध का नहीं हो सकता। इसका उद्देश्य तो कुछ और ही है।
इस्लामोफोबिया नहीं काफिरोफोबिया!
पूरी दुनिया में आजकल एक शब्द –इस्लामोफोबिया- काफी चर्चा में है। इसका अर्थ होता है कि दुनिया में रह रहे गैर-मुस्लिम समुदायों के मन में बिना की ठोस वजह के मुस्लिम समुदाय को ले कर भय, डर, दहशत की भावना घर कर गई है। इसलिए बहुत से समाज मुस्लिम विरोधी मानसिकता से घिरे हुए हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि कानपुर में हुई मामूली घटना के विरोध में मुस्लिम समुदाय जिस तरह पूरे भारत में अराजक प्रदर्शन कर रहा है, उसे –काफिरोफोबिया- शब्द से नवाजा जाना चाहिए।
केंद्रीय एंटी कन्वर्जन कानून जरूरी
क्या मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी इस बात से इनकार कर सकते हैं कि इस्लाम में धार्मिक तौर पर सभी गैर-मुसलमानों को काफिर कहा जाता है? काफिरों का अस्तित्व समाप्त करना इस्लाम का पवित्र कर्तव्य है। सभ्य वैश्विक समाज में इसके लिए तलवारपंथी अत्याचारी रक्तरंजित रास्ता तो अब अपनाया नहीं किया जा सकता, इसलिए कन्वर्जन के षड्यंत्र बड़े पैमाने पर रचे जा रहे हैं। समय-समय पर ऐसे षड्यंत्र सामने आते रहे हैं, आ रहे हैं। यही कारण है कि कन्वर्जन के विरोध में बहुत से राज्यो ने अब दंडात्मक कानूनी प्रावधान किए हैं। लेकिन षड्यंत्र इतने बड़े पैमाने पर रचे जा रहे हैं कि राज्य इनसे पूरी तरह निपट नहीं सकते। इसलिए समय की मांग है कि कन्वर्जन विरोधी कड़ा केंद्रीय कानून बनाया जाए।
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यह बहुत ही सोची समझी साजिश के तहत किया जा रहा है सभी राष्ट्र प्रेमी बंधुओं एवं प्रशासन को अलर्ट होकर इस पर नज़र रखनी है और क़ानूनी कार्यवाही अपेक्षित है
I love my India
देश में नफरत फैलाने वाले लोगों से सावधान ! राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त संगठनों, जेहादियों को उजागर करना होगा और उचित कानूनी कार्यवाही करने की आवश्यकता है