Prashant Kishor’s Jan Suraaj eyes a game changing debut in Bihar 2025 polls बिहार में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का आगामी 2025 चुनाव में भविष्य
Prashant Kishor’s Jan Suraaj eyes a game changing debut in Bihar 2025 polls बिहार में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का आगामी 2025 चुनाव में भविष्य

बिहार में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का आगामी 2025 विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन राजनीतिक विश्लेषकों और जनता दोनों के लिए एक बड़ा सवाल बन गया है। पिछले कुछ वर्षों से PK ने लगातार ज़मीनी संपर्क और जन संवाद के ज़रिए राज्य के राजनीतिक माहौल में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उन्होंने ‘जन सुराज पदयात्रा’ के माध्यम से गाँव-गाँव जाकर लोगों से सीधे बात की, उनकी समस्याओं को सुना और एक वैकल्पिक राजनीतिक मॉडल प्रस्तुत करने की कोशिश की।
प्रशांत किशोर ने ये स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी किसी भी मौजूदा गठबंधन जैसे NDA या INDIA के साथ नहीं जाएगी, बल्कि बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी कम से कम 40 महिलाओं को टिकट देगी और हर क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार खड़े करेगी। PK का पांच-बिंदु एजेंडा शिक्षा में सुधार, पलायन को रोकना, बुजुर्गों के लिए आर्थिक सुरक्षा, महिलाओं को आर्थिक ताकत और किसानों की दशा सुधारने पर केंद्रित है। ये एजेंडा साफ तौर पर जनता के बुनियादी मुद्दों को उठाता है जो अक्सर पारंपरिक राजनीति में पीछे छूट जाते हैं।
हाल के कुछ चुनावी सर्वेक्षणों और विश्लेषणों में PK को ‘kingmaker’ की संभावित भूमिका में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगर चुनाव में किसी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो जन सुराज की सीटें सरकार बनाने या गिराने में निर्णायक साबित हो सकती हैं। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ परंपरागत दलों के खिलाफ नाराज़गी है और PK की छवि एक नए विकल्प के रूप में उभर रही है। खासकर युवा मतदाताओं, नौकरीपेशा और पढ़े-लिखे वर्ग में PK की बातों को गंभीरता से सुना जा रहा है।
लेकिन इस पूरी संभाव्यता के साथ-साथ जन सुराज पार्टी के सामने बड़ी चुनौतियाँ भी हैं। संगठनात्मक तौर पर अभी पार्टी पूरी तरह तैयार नहीं दिखती। ज़्यादातर इलाकों में उनका कोई मज़बूत चेहरा नहीं है और एक नई पार्टी के तौर पर उसे चुनावी मशीनरी और संसाधनों की ज़बरदस्त ज़रूरत पड़ेगी। बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण, परिवारवाद और लोकल समीकरण बहुत मजबूत हैं, जिन्हें तोड़ना किसी भी नए दल के लिए आसान नहीं होता। इसके अलावा एक और अहम चुनौती है — पहचान और भरोसे का निर्माण। चुनाव में सिर्फ अच्छा एजेंडा या साफ छवि ही काफी नहीं होती; लोगों को यह भी यकीन होना चाहिए कि वो पार्टी वास्तव में जीत सकती है और उनके क्षेत्र के लिए काम करेगी।
जहाँ तक संभावित प्रदर्शन की बात है, ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि PK की पार्टी 20 से 40 सीटें जीत सकती है अगर सही उम्मीदवार चुने जाते हैं और ज़मीनी रणनीति सफल रहती है। कुछ क्षेत्रों में, खासकर शहरी इलाकों या जहाँ PK की पदयात्रा का असर ज़्यादा रहा है, वहाँ पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। हालाँकि अभी की स्थिति में पूर्ण बहुमत हासिल करना मुश्किल लगता है, लेकिन अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है, तो जन सुराज तय कर सकती है कि सत्ता में कौन आए।
प्रशांत किशोर का यह दावा कि वे राजनीति को ‘आइडिया-बेस्ड’ बनाना चाहते हैं, जहां जाति और धर्म से ऊपर उठकर बात हो, बिहार जैसे राज्य में बहुत महत्वाकांक्षी है। लेकिन अगर वे अपने एजेंडे को ज़मीन पर उतार पाए, संगठन को मज़बूती दे पाए, और उम्मीदवारों का चयन सोच-समझकर किया गया, तो जन सुराज एक गंभीर ताकत के रूप में उभर सकती है।
इस चुनाव में जन सुराज सिर्फ एक नई पार्टी नहीं, बल्कि एक नया प्रयोग है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता इस प्रयोग को कितना स्वीकार करती है। सफलता मिले या न मिले, एक बात तो तय है — प्रशांत किशोर की पार्टी बिहार की पारंपरिक राजनीति में एक नई बहस और दिशा जोड़ रही है, जो आने वाले वर्षों में राज्य की राजनीति को गहराई से प्रभावित कर सकती है।