Ghazal By Ravi Parashar तन की खद्दर उजली है

Ghazal By Ravi Parashar तन की खद्दर उजली है


तन की खद्दर उजली है,
मन की चादर मैली है।

महंगा जीने का सामान,
जान ही केवल सस्ती है।

हम केवल कुछ कमरे हैं,
बंजारों की बस्ती है।

सूखे उसके होठ, मग़र,
ख़्वाहिश उसकी गीली है।

दुनिया पर तू छाया है,
मुझसे धूप निकलती है।

लड़का उस पर मरता है,
लड़की उसको जीती है।

जब वो बोले, बुरा लगे,
उसकी चुप्पी खलती है।

भूख नहीं है अब उसको,
गाली उसने खा ली है।

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