Mahendra Pratap Singh University in Aligarh महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय
Mahendra Pratap Singh University in Aligarh महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय
14 सितम्बर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी और डिफेंस कॉरिडोर नोड का शिलान्यास कर दिया. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2019 में अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर स्टेट लेवल यूनिवर्सिटी खोलने का ऐलान किया था.
महेंद्र प्रताप सिंह प्रसिद्ध जाट राजा, एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे. उनकी याद और सम्मान में ही इस विश्वविद्यालय की नींव रखी गई है. ये यूनिवर्सिटी अलीगढ़ की कोल तहसील के लोधा और मुसईपुर करीम जरौली गांवों की लगभग 92 एकड़ ज़मीन पर बनेगी. इसे बनाने में लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च होंगे. ये यूनिवर्सिटी अलीगढ़ मंडल के 395 कॉलेजों को एफिलिएशन देगी.
यूनिवर्सिटी के शुरू होने के बाद इसमें अलीगढ़, हाथरस, कासगंज और एटा के कॉलेज शामिल होंगे. उम्मीद है कि यूनिवर्सिटी से लगभग 2.5 लाख छात्रों को फायदा होगा.
यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए पहली किस्त के तौर पर 10 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं. उम्मीद है कि ये यूनिवर्सिटी अगले दो साल में यानी 2023 तक बनकर तैयार हो जाएगी.
संभावना है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय आधुनिक शिक्षा का एक बड़ा केंद्र बनेगा. साथ ही देश में डिफेंस से जुड़ी पढ़ाई, टेक्नोलॉजी और मैनपावर तैयार करने वाला सेंटर भी बनेगा. नई शिक्षा नीति में जिस तरह शिक्षा, कौशल और स्थानीय भाषा में पढ़ाई पर बल दिया गया है, उससे इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को बड़ा फायदा होगा.
Who Was Raja Mahendra Pratap Singh?
कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह?
अलीगढ़ में जिनके नाम पर स्टेट यूनिवर्सिटी की नींव रखी गई है, उनका जन्म 1886 में 1 दिसंबर को हुआ था. महेंद्र प्रताप सिंह प्रसिद्ध जाट राजा, एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत के राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिनती उस समय में अपने एरिया के चुनिंदा लोगों में होती थी. जिस जगह महेंद्र प्रताप सिंह पढ़ते थे उसे मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल कहा जाता था.
बाद में इसी को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कहा गया. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने एएमयू के विकास के लिए जमीन भी दी थी. 1929 में करीब तीन एकड़ की जमीन दो रुपए सालाना की लीज पर दे दी थी.
भारत के बाहर से भारत को आज़ाद कराने का पहला प्रयास राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ही किया था. उन्होंने अफगान सरकार के सहयोग से 1 दिसंबर 1915 को पहली निर्वासित हिंद सरकार का गठन किया था. आजादी के लिए प्रयास करते हुए वो 31 साल आठ महीने तक विदेश में रहे. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी. इसके बावजूद उनके पास भारतीय पासपोर्ट नहीं था.
उनके पास अफगानिस्तान सरकार का पासपोर्ट था. कहा जाता है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदुस्तान से बाहर जाने से पहले देहरादून के डीएम ऑफिस के जरिए पासपोर्ट बनवाने की कोशिश की थी लेकिन इससे पहले वो जर्मनी के समर्थन में एक लेख लिख चुके थे जिसकी वजह से उन्हें पासपोर्ट नहीं दिया गया.
इसके बाद Mahendra Pratap Singh ने समुद्र मार्ग से ब्रिटेन पहुंचने की योजना बनाई. बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सोवियत संघ, जापान, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, और तुर्की जैसे देशों की यात्रा की. हालांकि 1946 में वो शर्तों के तहत हिंदुस्तान वापस आ सके थे.
एक और बात कही जाती है कि 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना से पहले ही राजा Mahendra Pratap Singh ने विश्व शांति के लिए ‘संसार संघ’ की परिकल्पना की थी. उनका मानना था कि संसार संघ की परिकल्पना से देश कभी आपस में नहीं लड़ेंगे. वो चाहते थे कि पूरी दुनिया पांच प्रांतों में बंटी हो जिसकी एक राजधानी और एक सेना हो. एक अदालत और एक कानून हो. संसार संघ की सेना में सभी देशों के सैनिक शामिल हों. किसी भी देश की शक्ति संसार संघ की सेना से ज्यादा न हो. उनका मानना था कि एक सेना होने से दुनिया के हर देश का सैनिकों पर होने वाला खर्च रुक जाएगा और उस पैसे का इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए किया जाएगा. यानी उन्होंने प्रेम धर्म और संसार संघ की परिकल्पना के जरिये भारतीय संस्कृति के प्राण तत्व वसुधैव कुटुम्बकम् को साकार करने का प्रयास किया था. ये भी कहा जाता है कि राजनीतिक दलों ने उनके साथ न्याय नहीं किया. उनको जो सम्मान मिलना चाहिए, वो नहीं मिला.