Hindi Shayari सहूंगा दर्द वो कैसे Sad Shayari

Hindi Shayari सहूंगा दर्द वो कैसे Sad Shayari

कहूं या ना कहूं मैं कुछ ये खुद से कहता रहता हूं

मैं असमंजस की नदिया में हमेशा बहता रहता हूं

अगर मैं बोल डालूं और जवाब इनकार में आए

सहूंगा दर्द वो कैसे सोचकर सहता रहता हूं

अपने सीने के हिस्से को 

राय मानो जो मेरी तो आज इक काम कर डालो

है रोज़ाना का ये किस्सा इसे आराम कर डालो

मेरे सीने के हिस्से की हसरतों से जो वाकिफ़ हो

अपने सीने के हिस्से को हमारे नाम कर डालो

बताशा भी वो झूठा था 

वो झूठी मुस्कुराहट थी, तमाशा भी वो झूठा था

मोहब्बत की चाशनी का बताशा भी वो झूठा था

मुझे शक था मगर तुमने ठगा हर बार ही मुझको

मेरे बिन रह न पाओगी दिलासा भी वो झूठा था

बचाके इनको रखना तुम नज़र से 

फना हो जाते हैं मज़बूत रिश्ते आज़माने में

बचाके इनको रखना तुम नज़र से इस ज़माने में

कई लोगों की फितरत है नफ़रतों से सुकूं पाना  

है गुज़री उम्र इनकी बस लगाने में, बुझाने में

आंसुओं की झील में  

प्यार क्या है ज़िंदगी है या अंधेरी रात है

फलसफों के खेल में ये जीत है या मात है

आंसुओं की झील में डूबे हैं प्रेमी खुद यहां

कोई न कोई तो इसमें ख़ास ऐसी बात है

तुम ही हो

मेरे असमंजस का बिन्दू मेरा निश्चय तुम ही हो

मेरी सारी आय तुम्ही हो मेरा सब व्यय तुम ही हो

तुम हो तो इस दुनिया में मेरी पहचान भी कायम है

मेरी पूंजी, मेरा संचय, मेरा परिचय तुम ही हो

कोई मकसद नहीं दिखता

हमें था शौक हाथ अपना फकीरों को दिखाने का

सिलसिला खूब था चादर मज़ारों पर चढ़ाने का

हुई है ज़िंदगी में जब से आमद आपकी हमदम

कोई मकसद नहीं दिखता लकीरों को पढ़ाने का

ज़माना जैसेे सुनता है 

सुई का छेद छोटा हो तो उसमें धागा पतला दो

ये हरकत है नहीं अच्छी उसे धीरे से जतला दो

ये माना संस्कारों में ही पलकर आए हो तुम पर

ज़माना जैसेे सुनता है उसे वैसे ही बतला दो 

सियासत को क्यूं गाली दें

सियासत को क्यूं गाली दें अगर हम लड़ नहीं सकते

सियासी राह मुश्किल मान उस पर बढ़ नहीं सकते

तमाचे खाने की आदत बना लेते हैं जो बुजदिल

तमाचा खाने पर उलटे तमाचा जड़ नहीं सकते

कुछ कम करो

ज़िंदगी के खेल की गंभीरता कुछ कम करो

बेवकूफी से भरी ये वीरता कुछ कम करो

संतुलन ही ज़िंदगी जीने का पहला मंत्र है 

आलसीपन से भरी ये धीरता कुछ कम करो

उनके ही ठिकाने में  

वो जो मशगूल रहते हैं कपट के कारखाने में

कसर बाकी नहीं रखते मुझे नीचे गिराने में

इजाज़त है नहीं मुझको मेरी तहज़ीब की वरना

लगा दूं मैं ठिकाने उनको उनके ही ठिकाने में

जो दिल में तेरे कौंधा हो

उड़ने दे अरमान वही जो दिल में तेरे कौंधा हो

फिर दुनिया के लिए भले वो सीधा हो या औंधा हो

पुलाव

पुलाव प्लेट में हो या ख्यालों में

पाने के लिए हाथ चलाना ही पड़ता है

गर्लफ्रेंड

मेरे ख्यालात तक पर जो रेड करती है

उसका फ़ोन तक मेरे लिए अजनबी सा है

काले तिल का पहरा 

दिल पर भी दिमाग पर भी छाया तेरा चेहरा है

दिन पर भी और रात पर भी नशा तेरा गहरा है    

नज़र की क्या मज़ाल कि वो तुझे लगने की सोचे भी

तेरे होंठों के पास रहता काले तिल का पहरा है

तो मैं नकाब भी दूंगा

जो तुम जवाब मांगोगी तो मैं हिसाब भी दूंगा

जो तुम शराब मांगोगी तो मैं कबाब भी दूंगा

तुम्हारी बेवफ़ाई जब तुम्हें भीतर कचोटेगी

जो तुम हिजाब मांगोगी तो मैं नकाब भी दूंगा

किस्मत

या तो किस्मत के पीछे तुम उम्र बरबाद कर डालो

या फिर खुद को ही किस्मत का बड़ा उस्ताद कर डालो

मुसीबत जो भी राहों में दिखाई देती हैं तुमको

उन्हें तुम अपने बूते रब का आशीर्वाद कर डालो  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *