Best web series to watch Hindi Mukhbir Review मुखबिर रिव्यू Best web series to watch in 2023

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Mukhbir Review

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”अपने सारे रिश्तों को बलिदान चढ़ाते मुखबिर

दुश्मन के सब राज़ पता कर देश बचाते मुखबिर

कर देते कुर्बान जवानी का जीवन का पल पल 

सेना के जैसे ही अपनी जान लड़ाते मुखबिर”

मुख़बिर वेबसीरीज़ में 8 एपिसोड हैं और हर एपिसोड लगभग चालीस मिनट का है. यानी पूरा मामला लगभग साढ़े पांच घंटे का है. एक-आध रोमैंटिक सीन को छोड़ दें तो सीरीज़ कहीं से भी स्लो नहीं लगती. एक से दूसरे एपिसोड की तरफ़ आप फ़िसलते चले जाते हैं.    

कहानी 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर बेस्ड है और मलय कृष्ण धर की किताब मिशन टू पाकिस्तान से इन्स्पायर्ड है. उस दौरान दोनों देशों की एजेंसीज़ कैसे एक दूसरे की खुफ़िया जानकारी जुटाने के लिए अपने-अपने एजेंट्स का इस्तेमाल करती हैं और फिर कैसे उस खुफ़िया जानकारी का इस्तेमाल अपने लक्ष्य को पाने के लिए करती हैं, इसी को बताती है ये वेबसीरीज़ मुख़बिर.

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पहाड़ी वादियों में ज़मीन पर टैंक की दस्तक वाला पहला सीक्वेंस ही ऐसा है जो आपको सीरीज़ से बांध देता है. हालांकि इसके एक सीन में एक बच्चा ज़मीन के नीचे हो रही हलचल को महसूस करने के लिए अपना दायां कान ज़मीन पर लगाता है और जब वो उठता है तो अपना बायां कान ऊपर उठाता है.

इसके अलावा भारतीय एजेंट हरफ़न की पाकिस्तान में 2-2 सो कॉल्ड लव स्टोरीज़ में कुछ अच्छे सीक्वेंस हैं. ख़ास तौर पर बेग़म अनार के साथ उसके कुछ प्रेम दृश्य काफ़ी प्रभावित करते हैं.

अदाकारी के लिहाज़ से एक्टर्स को 2 कैटेगरी में बांटा जा सकता है.

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जो कलाकार पूरी फ़िल्म पर हावी हैं उनमें प्रकाश राज, हर्ष छाया, दिलीप शंकर, बरखा बिष्ट और हरफ़न यानी ज़ैन ख़ान दुर्रानी हैं.

दूसरी कैटगरी में वो कलाकार हैं जिनका रोल तो छोटा है लेकिन उन्होंने निभाया इस तरह से है कि वो आपको सीरीज़ खत्म होने के बाद याद रह जाते हैं. इनमें अतुल कुमार, सुशील पांडे, और ज़ोया अफ़रोज़ हैं.

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कुछ क्लोज़ शॉट्स में बेग़म अनार की ठोढ़ी के पास पिम्पल दिखाई देता है जो दर्शकों को अखर सकता है. हालांकि जमीला के रोल में लम्बी-पतली ज़ोया अफ़रोज़ की ख़ूबसूरती बेदाग़ और क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.

ज़ैन ख़ान की एक्टिंग अच्छी है लेकिन उनके दांत और मसूड़े कई सीन में बेहद अजीब लगते हैं.

सीरीज़ में एक जबरदस्त डायलॉग भी है…

”मुझे मरा हुआ हबीबुल्लाह चाहिए. ज़िंदा.”

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सीरीज़ के अंत में जब मैच्योर मूर्ति… इमोशनल दुर्रानी को देश के लिए जासूसों की अहमियत समझाते हैं तो फिल्म अपने मकसद में सफल हो जाती है.

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