Akhilesh Yadav vs Yogi Adityanath गोरखपुर से चुनाव लड़ पाएंगे अखिलेश ?
Akhilesh Yadav vs Yogi Adityanath गोरखपुर से चुनाव लड़ पाएंगे अखिलेश ?

याद कीजिए 2021 का बंगाल विधानसभा चुनाव जब बीजेपी की तरफ से अमित शाह ने 294 में से 200 सीटें जीतने का दावा किया था. लेकिन जब नतीजे आए तो बीजेपी 80 सीटें भी नहीं पाई थी. सवाल उठता है कि फिर ये नेता ऐसी जुमलेबाजी करते क्यों हैं?
कहा जाता है कि
No one is ever defeated until defeat has been accepted as reality.
यानी
कोई भी तब तक नहीं हार सकता जब तक कि पराजय को स्वीकार ना कर लिया जाए.
यानी
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर हर नेता चुनाव से पहले की जुमलेबाजी में लगा रहता है. नेता हर चुनाव में अपनी पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलने का दावा करता है. वो माहौल बनाता है कि उसकी पार्टी चुनाव में मज़बूती के साथ जीतने जा रही है. नेता ऐसा इसलिए करता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसके कॉन्फिडेन्स को देखकर प्रभावित हों और जीतने जा रही पार्टी के साथ खड़े हो जाएं.

चुनावी मौसम में हर नेता को लगता है कि वो बड़े से बड़ा दावा करे ताकि उसकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मन मज़बूत रहे, उनका हौसला बना रहे. ऐसा ही एक दावा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कर रहे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर अखिलेश यादव ने दावा किया है कि समाजवादी पार्टी इस चुनाव में 400 सीटें जीतने जा रही है. उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 400 सीटें जीतने का दावा अखिलेश ने एक बार नहीं बार-बार किया है. ये दावा कितना बड़ा है इसका अंदाजा आप कुछ आंकड़ों से लगा सकते हैं.
जो अखिलेश 403 में से 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं वो पिछले चुनाव में अपनी पार्टी को केवल 47 सीटें जितवा पाए थे. और जिस बीजेपी को अखिलेश 2022 में हराने का दावा कर रहे हैं उसने 2017 में अकेले ही 312 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब अखिलेश का दावा है कि बीजेपी 2022 में 312 सीटों में से कम से कम 309 सीटें तो हारेगी ही. इसके उलट बीजेपी इस चुनाव में भी 300 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही है. बीजेपी का दावा उतना ही है जितना वो पिछले चुनाव में अचीव कर चुके हैं. यानी बीजेपी का दावा काफी रीज़नेबल, प्रैक्टिकल, और लॉजिकल लगता है.

दूसरी तरफ अखिलेश के कॉन्फिडेन्स और हौसले की दाद देनी पड़ेगी लेकिन ये कॉन्फिडेन्स उनके चुनावी फैसलों में दिखाई नहीं देता और ना ही आंकड़े उनके इस कॉन्फिडेन्स को सपोर्ट कर रहे हैं. अखिलेश के 400 सीटें जीतने के दावे को खोखला साबित करता है उनका खुद के चुनाव के लिए सीट चुनने का फैसला. अखिलेश ने खुद के लिए मैनपुरी की करहल सीट को चुना है. ये वही अखिलेश हैं जिन्होंने यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से चुनाव लड़ने के फैसले पर कहा था कि बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को घर भेज दिया है. अब अपने लिए मैनपुरी की करहल सीट चुन कर अखिलेश ने खुद घर जाने का फैसला कर लिया है.
खास बात ये है कि अखिलेश तो विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन योगी के चुनाव लड़ने के फैसले के बाद वो चुनाव लड़ने को मजबूर हुए हैं. राजनीति में चैलेंजर का हौसला काफी महत्वपूर्ण होता है. पहले से स्थापित नेता के खिलाफ ये हौसला सिर्फ जुमलेबाजी में नहीं बल्कि ज़मीन पर भी दिखना चाहिए.
पिछले कुछ बरसों में ये हौसला अरविंद केजरीवाल ने एक चैलेंजर के तौर पर कई बार दिखाया है. वो अरविंद केजरीवाल ही थे जिन्होंने दिल्ली की 15 साल की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनकी सीट पर चैलेंज करने की हिम्मत दिखाई थी. इस हौसले का फायदा भी अरविंद केजरीवाल को भरपूर मिला था और आखिरकार वो शीला दीक्षित को हराने में कामयाब हुए थे. इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भी वाराणसी में खुलकर चुनौती दी थी. भले ही वो चुनाव हार गए लेकिन उसी हिम्मत ने अरविंद केजरीवाल को भारतीय राजनीति में स्थापित करने में बड़ा रोल निभाया था.
इसी तरह अपने प्रतिद्वंदी से सामने से भिड़ने का मामला पिछले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था. पश्चिम बंगाल में भले ही सुवेंदु अधिकारी बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा और ममता बनर्जी के सामने चैलेंजर थे लेकिन हिम्मत ममता बनर्जी ने दिखाई थी. सुवेंदु अधिकारी ये हिम्मत नहीं जुटा पाए थे कि वो ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ सकें. तब ममता ने फैसला किया था कि वो अपनी जीती हुई सेफ सीट भवानीपुर छोड़कर सुवेंदू अधिकारी के गढ़ नंदीग्राम में जाकर चुनाव लड़ेंगी. ममता बनर्जी ने ऐसा करके एक बड़ा रिस्क लिया था. और उस रिस्क की कीमत उन्हें नंदीग्राम में चुनाव हारकर चुकानी भी पड़ी. लेकिन उसी एक फैसले ने ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में फिर से सत्ता में वापस ला दिया.
जिस वक्त बंगाल में बीजेपी ने पूरा चुनावी माहौल बना दिया था. बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे, सर्वे बीजेपी की जीत की संभावना जता रहे थे तब ममता बनर्जी ने ज़मीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए असली हिम्मत दिखाई थी. चैलेंजर के रोल में सुवेंदु अधिकारी थे लेकिन ममता बनर्जी ने सुवेंदु के गढ़ में जाकर चैलेंजर को चैलेंज करने का फैसला लिया था. ममता ने ये परवाह नहीं की कि वो चुनाव हार गईं तो क्या होगा. उनका मकसद था कि टीएमसी के कार्यकर्ताओं में ये मैसेज जाना चाहिए कि उनकी नेता ज़मीन पर चुनौती को चुनौती देकर लड़ना जानती है.
ममता ने अपने कार्यकर्ताओं के संदेश दिया कि वो लड़ाई में खुद फ्रंट पर डटी हुई हैं. ममता की फाइटिंग स्पिरिट देखकर ही टीएमसी पूरे बंगाल में जीत गई. भले ही ममता नंदीग्राम से हार गईं लेकिन उनकी पार्टी सत्ता में आ चुकी थी और उसके बाद उनका एक बार फिर भवानीपुर से उपचुनाव जीतना आसान हो चुका था.
अब अगर यूपी की बात करें तो अखिलेश यूपी की लगभग सारी सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं लेकिन चुनाव वो लड़ने जा रहे हैं अपने घर की सीट से. न तो वो अरविंद केजरीवाल की तरह हिम्मत दिखा पा रहे हैं और न ममता बनर्जी की तरह. अगर वाकई अखिलेश 403 में से 400 सीटें जीतना चाहते हैं या 300 सीटें जीतना चाहते हैं या फिर बहुमत के आसपास सीटें हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें गोरखपुर की सदर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनौती देनी चाहिए.
अखिलेश का ये एक फैसला पूरे यूपी में समाजवादी पार्टी का मुकद्दर बदल सकता है. इस फैसले से पूूरे उत्तर प्रदेश में ये संदेश जाएगा कि जो भी बीजेपी को वोट नहीं देना चाहता वो एसपी के साथ आ जाए क्योंकि पूरे यूपी में अखिलेश ही योगी को उनके गढ़ में चुनौती दे सकते हैं और यूपी में सरकार भी बना सकते हैं. हो सकता है कि वो गोरखपुर से चुनाव हार भी जाएं लेकिन पूरे उत्तर प्रदेश में वो वैसी सफलता पा सकते हैं जैसी ममता बनर्जी को बंगाल में हासिल हुई थी.