हामिद अंसारी का मरा भतीजा मुख्तार के चेलों ने सीना पीटा

हामिद अंसारी का मरा भतीजा, मुख्तार के चेलों ने सीना पीटा

हामिद अंसारी का मरा भतीजा, मुख्तार के चेलों ने सीना पीटा. दोस्तो जो मुख्तार अंसारी ज़िंदा रहते कभी सियासत से दूर नहीं हो पाया…उसकी मौत के बाद भी सियासत उससे दूर नहीं हो सकती. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले… उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक… राजनीति… मुख्तार के साथ या मुख्तार के खिलाफ़… वाली लड़ाई में बदलती नज़र आ रही है.

एक तरफ़ मुख्तार की हार्ट अटैक से हुई मौत और उसे कानून के शिकंजे तक लाने वाले लोग हैं दूसरी तरफ़ मुख्तार की हार्ट अटैक से हुई मौत को हत्या बताने और उसके अपराधों को छुपाने वाले लोग हैं.

एक तरफ़ वो लोग हैं जिन्होंने मुख्तार के ख़ून से रंगे हाथों की सच्चाई दुनिया को बताई और दूसरी तरफ वो लोग हैं जिन्होंने उस ख़ून को सरकारी पैसे से धोने की कोशिश की.

एक तरफ़ मुख्तार के हाथों कत्ल कर दिये गये लोगों के रोते बिलखते परिवार हैं और दूसरी तरफ मुख्तार के लंबे चौड़े ख़ानदान से सियासी फायदा लेने की चाहत रखने वाले पॉलिटिकल परिवार हैं.

एक तरफ़ वो लोग हैं जिन्होंने मुख्तार और उसके गुंडों के ज़ुल्म का नंगा नाच अपनी आँखों से देखा है और दूसरी तरफ वो लोग हैं जिन्होंने मुख्तार की करतूतों पर हमेशा परदा डालने की कोशिश की है.

वैसे तो मुख़्तार शब्द का अर्थ होता है सक्षम, स्वतंत्र, या हर अधिकार रखने वाला… लेकिन मुख़्तार अंसारी के संबंध में ये अर्थ हो जाता है…

वो आदमी जो बस अपने मन की करता था.
वो गुंडा जिसके खिलाफ़ 60-65 केस होने के बावजूद कानून बस एक खिलौना था.
वो माफिया जो सरकारों और नेताओं को अपने पैरों की जूती समझता था.
वो शातिर जिसे सज़ा देने की हिम्मत किसी सरकार में नहीं थी.
वो गैंगस्टर जिसके बिना सपा और बसपा के लिए सरकारें चलाना मुश्किल था.
वो ताकत जिसकी सलामती के लिए कांग्रेस दिल्ली से पंजाब तक एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देती थी.

मुख्तार अंसारी वही आदमी था जिसके चाचा को कांग्रेस ने देश का उपराष्ट्रपति तक बनाया था. हामिद अंसारी और देश के अन्य ताकतवर लोगों से अपने रिश्ते की दुहाई ख़ुद मुख्तार अंसारी ने तब दी थी जब उसकी खुदमुख्तारी को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली और पंजाब तक चुनौती दी थी.

दरअसल जब 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो अपराधियों पर मौत बरसने लगी थी. मुख्तार अंसारी के कई गुर्गों का एनकाउंटर हुआ और कई ने पुलिस के आगे सरेंडर कर दिया. लगभग डेढ़ साल तक ये सब देखने के बाद मुख्तार ने योगी की पुलिस के डर से 2019 में पंजाब में शरण ली थी.

कहा जाता है कि यूपी की जेलों में रहने के डर से मुख्तार ने कांग्रेस की पंजाब सरकार से साठगांठ करके अपने ही खिलाफ़ एक फर्जी केस पंजाब में रजिस्टर करवा लिया था. और इसी केस की आड़ में उसे जनवरी 2019 में पंजाब की रोपड़ जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था.

जब मुख्तार को यूपी की जेल में लाने के लिए योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई तो मुख्तार ने अपने परिवार और ख़ानदान से जुड़े कई बड़े नामों की दुहाई देते हुए यूपी ना भेजने की अपील की थी.

हालांकि योगी सरकार मुख्तार को यूपी लाकर ही मानी. 2021 में मुख्तार को पंजाब से लाकर यूपी की बांदा जेल में डाल दिया गया.

दोस्तो मुख्तार के खिलाफ जो मुकद्दमे हैं उनमें एक केस कांग्रेस के ही नेता और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या का है. 1991 में तीन अगस्त को
अवधेश राय की हत्या… उनके घर के सामने… अजय राय की आँखों के सामने ही कर दी गई थी.

एक दूसरा केस है 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का. दरअसल यही वो केस है जो बताता है कि मुख्तार अंसारी अपने अपराधों पर परदा डालने के लिए राजनीति को कितना ज़रूरी समझता था.

दरअसल 2002 में बीजेपी के नेता कृष्णानंद राय ने गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को हरा दिया था. अफज़ाल अंसारी इस हार से पहले इसी सीट पर पांच बार विधायक रह चुका था. आप जानते हैं कि अफजाल अंसारी को 2019 में भी गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद चुना गया है.

2002 में मिली उस हार को अफजाल अंसारी, मुख्तार अंसारी, और उसका लंबा चौड़ा सियासी ख़ानदान पचा नहीं पाया था. इसी रंजिश में 2005 में कृष्णानंद राय की इतनी बेरहमी से हत्या की गई थी कि उसे सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए.

रिपोर्ट्स के मुताबिक मुख्तार के गुंडों ने कृष्णानंद राय पर लगभग 400 राउंड फायरिंग की थी. मौत के बाद राय के शरीर से 67 गोलियां निकाली गई थीं.

बीजेपी विधायक और उनके साथियों पर ये हमला इतने भयानक और ख़तरनाक तरीके से इसलिए किया गया था ताकि पूरे पूर्वांचल के लोगों में मुख्तार का ख़ौफ कायम किया जा सके.

आम लोगों के लिए ये साफ मैसेज था कि भले ही उन्होंने अपना विधायक कृष्णानंद को चुना था लेकिन उसे जिंदा रखना या ना रखना मुख्तार के हाथ में था. यानी मुख्तार बंदूक के दम पर राजनीति को अपने काबू में रखना चाहता था.

अब मुख्तार की मौत के बाद उसके चाहने वाले राजनीतिक दल उसी के नाम पर राजनीति को अपने काबू में रखना चाहते हैं. मुख्तार के ये चेले मुख्तार की मौत का पूरा सियासी फायदा उठाना चाहते हैं.

इन्हें हर वो वोट चाहिए जो मुख्तार या उसके आपराधिक साम्राज्य से सहानुभूति रखता है. मुख्तार के इन चेलों को उन वोटों से मतलब नहीं है जो मुख्तार के सताए हुए हैं. अब फैसला लोगों को करना है कि कौन मुख्तार और उसकी ख़ूनी विरासत के साथ है और कौन उसके ख़ूनी खेल को खत्म करने वालों के साथ.

आप किसके साथ हैं अपनी राय कॉमेंट में ज़रूर लिखिएगा. नमस्कार.

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