सपा से हुआ समझौता, कांग्रेस जीतेगी क्षेत्र इकलौता?

सपा से हुआ समझौता, कांग्रेस जीतेगी क्षेत्र इकलौता?

समाजवादी पार्टी ने तय कर दिया है कि कांग्रेस… उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 20 सीटें नहीं हार पायेगी. इसकी सीधी सादी वजह ये है कि जब कांग्रेस यूपी में लोकसभा की बीस सीटें लड़ेगी ही नहीं तो हारेगी कैसे. और रही बात जीतने की तो उसकी तो वैसे भी कोई संभावना नहीं है या फिर ना के बराबर संभावना है.

कई दिनों से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बातचीत, दांवपेंच, उठापटक, और पैंतरेबाज़ी चल रही थी.

बुधवार यानी 21 फरवरी को दोनों पार्टियों के बीच यूपी में सीट शेयरिंग फॉर्मुला फायनल हो गया.

इस फॉर्मुले के तहत समाजवादी पार्टी कांग्रेस को उतनी सीटें देने को तैयार हो गई है जितनी कांग्रेस पिछले चार चुनावों में नहीं जीत पाई है.

जब से बीजेपी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह राष्ट्रीय स्तर पर ताकतवर हुए हैं तब से यूपी में कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए तरस रही है.

2022 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटें जीत पाई.

उससे पहले 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल एक सीट रायबरेली की जीत पाई.

उससे पहले 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल सात सीटों पर जीत पाई थी.

और उससे पहले 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटें जीत पाई थी.

यानी पिछले दो विधानसभा चुनावों और पिछले 2 लोकसभा चुनावों में यूपी में कांग्रेस कुल 12 सीटें जीत पाई थी. जी हां. चार चुनावों में कुल 12 सीटें.

और कांग्रेस की हिम्मत देखिये कि वो समाजवादी पार्टी से ज़िद कर रही थी कि उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में लड़ने के लिए 20 सीटें चाहिए. वो तो भला हो अखिलेश यादव का कि उन्होंने कांग्रेस को शर्मिंदगी से बचा लिया और 17 सीटें देने को राजी हो गये.

अगर अखिलेश कांग्रेस को 20 सीटें देने पर राज़ी हो जाते तो कांग्रेस के माथे पर 19 या 20 सीटें हारने का दाग लगता. अब जब वो लड़ेगी ही 17 सीटों पर तो उसके माथे पर ज्यादा से ज्यादा 17 सीटें हारने का ही दाग लगेगा.

इसलिए कांग्रेस नेताओं को धन्यवाद करना चाहिए अखिलेश यादव का कि वो कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 20 सीटें देने पर राज़ी नहीं हुए.

कांग्रेस भी 17 सीटें लड़ने को लेकर उत्साहित और खुश है. सपा से समझौते के बाद
कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि उन्हें ये बताते हुए खुशी हो रही है कि आपसी समन्वय से ये निर्णय लिया गया है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बाकी 63 सीटों पर INDI गठबंधन के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सपा ने जो सीटें कांग्रेस को हारने के लिए दी हैं उनमें

Amethi
Kanpur
Fatehpur Sikri
Bansgaon

Saharanpur
Prayagraj
Maharajganj
Varanasi

Amroha
Jhansi
Bulandshahr
Ghaziabad

Mathura
Sitapur
Barabanki
और
Deoria शामिल हैं.

इसके अलावा सपा ने रायबरेली की सीट भी कांग्रेस को लड़ने के लिए दी है. जहां से पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी जीती थीं. हालांकि इस बार रायबरेली में कांग्रेस का क्या होगा इसका भगवान ही मालिक है क्योंकि सोनिया गांधी खुद रायबरेली में चुनाव लड़ने से पीछे हट गई हैं.

सोनिया गांधी ने लोकसभा के बदले राज्यसभा से संसद में जाने का फैसला किया है और वो राजस्थान से राज्यसभा की प्रत्याशी के तौर पर निर्वाचित हो चुकी हैं.

जहां तक अमेठी की बात है तो 2019 में राहुल गांधी खुद वहां से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. इस बार वो अमेठी से चुनाव लड़ेंगे भी या नहीं. ये भी तय नहीं है.

इसके अलावा रही बात कांग्रेस के हिस्से की उन 15 सीटों की जो रायबरेली और अमेठी को छोड़कर बचती हैं तो ये 15 सीटें जब कांग्रेस 2014 और 2019 में नहीं जीत पाई तो तो 2024 में किस बुनियाद पर जीतेगी ये बड़ा सवाल है.

बड़ी बात ये है कि समाजवादी पार्टी वाराणसी सीट भी कांग्रेस को देने को तैयार हो गई.

रिपोर्ट है कि प्रियंका गांधी ने पहले राहुल गांधी से बात की और फिर उन्होंने अखिलेश यादव से बात की. इसके बाद दोनों पार्टियों में समझौता हो गया.

इससे पहले अखिलेश यादव ने कांग्रेस से साफ कह दिया था कि जब तक सीटों का बंटवारा नहीं होता तब तक वो राहुल गांधी की भारत
जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल नहीं होंगे.

अब समझौता होने के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि अंत भला तो सब भला…कोई विवाद नहीं है अब कांग्रेस और सपा का गठबंधन होगा.

मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि ये गठबंधन सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि एमपी तक जाएगा. समझौते के तहत कांग्रेस मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी को एक सीट देगी.

खबर है कि सपा को खजुराहो की सीट दी जा सकती है.

मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें आती हैं. यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है. पिछले चुनाव में यानी 2019 में बीजेपी ने यहां की 29 में से 28 सीटें जीती थीं.

कांग्रेस सिर्फ एक ही सीट जीत पाई थी. वो सीट थी छिंदवाड़ा की जहां से कांग्रेस नेता कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ चुनाव जीते थे.

वैसे 2024 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और सपा के बीच हुए समझौते का ना तो एमपी में कोई असर होता दिखाई दे रहा है और ना ही यूपी में.

याद रखिये कि 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी और अखिलेश एकजुट हुए थे. उस समय अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.

उस समय राहुल और अखिलेश ने यूपी में धुआंधार चुनाव प्रचार किया था. उस समय दोनों ने नारा दिया था- ‘यूपी को ये साथ पसंद है.’ कांग्रेस नेताओं ने राहुल और अखिलेश को यूपी के दो लड़के कहकर खूब प्रचारित किया था.

लेकिन तमाम हो हल्ले के बावजूद अखिलेश की समाजवादी पार्टी को पचास से भी कम और राहुल की कांग्रेस को दस से भी कम विधानसभा सीटें मिली थीं.

सरकार बनाना तो दूर सपा और कांग्रेस मिलकर एक सम्मानजनक विपक्ष भी नहीं बन पाये थे. उसके बाद एक विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव और बीत चुके हैं लेकिन विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस की हालत और पतली होती दिखाई दी है.

कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि 2024 के लिए सपा ने कांग्रेस को जो 17 सीटें दी हैं वो वास्तव में लड़ने के लिए नहीं बल्कि हारने के लिए दी हैं.

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