सपा को मनोज पांडेय जैसे ब्राह्मण नहीं चाहिए?

सपा को मनोज पांडेय जैसे ब्राह्मण नहीं चाहिए?

अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव एक ऐसे नेता थे जिन्हें धरतीपुत्र भी कहा जाता था. वैसे तो उनकी राजनीति समाज के पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के इर्द गिर्द ही घूमती थी लेकिन मुलायम ही वो नेता थे जो कल्याण सिंह जैसे नेता के साथ भी गठबंधन करने का साहस दिखा सकते थे.

दूसरी तरफ़ पीडीए के चक्कर में पड़े अखिलेश यादव की स्थिति माया मिली ना राम वाली हो गई है. जिस पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, और अल्पसंख्यक के रहनुमा बनने का दावा अखिलेश यादव रोज़ करते हैं, उसी पीडीए के लोग… अखिलेश पर… पीडीए की ही अनदेखी का आरोप लगाकर… दूर होते जा रहे हैं.

बात इतनी ही नहीं है कि पीडीए के लोग अखिलेश से दूर हो रहे हैं, समाजवादी पार्टी का साथ… वो ब्राह्मण और ठाकुर नेता भी छोड़ रहे हैं जिन्हें आए दिन सपा के पीडीए से जुड़े नेता गरियाते रहते हैं.

रायबरेली के नेता डॉक्टर मनोज पांडेय उन्हीं सवर्ण नेताओं में शामिल हैं जिन्हें स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में रहते हुए आए दिन गरियाते रहते थे.

अब स्थिति ये है कि ना स्वामी प्रसाद मौर्य अखिलेश के साथ हैं और ना ही डॉक्टर मनोज पांडेय. 27 फ़रवरी को राज्यसभा चुनाव की वोटिंग से पहले तक अखिलेश यादव… मनोज पांडेय को एक ताकतवर नेता मानते थे.

लेकिन जैसे ही डॉक्टर मनोज पांडेय ने राम लला की शरण ली वैसे ही अखिलेश की नज़र में उनकी ताकत कम हो गई. अखिलेश ये भूल गये कि डॉक्टर मनोज पांडेय रायबरेली की ऊंचाहार सीट से लगातार तीन बार के विधायक हैं. 2012, 2017, और 2022 का चुनाव मनोज पांडेय ऊंचाहार सीट से जीत चुके हैं.

अखिलेश यादव ये भी भूल गये कि डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय वही नेता हैं जो रायबरेली की ऊंचाहार सीट से पीडीए के सो कॉल्ड हिमायती स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे को दो-दो बार हरा चुके हैं.

2012 में जब डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय रायबरेली की ऊंचाहार सीट पर पहली बार चुनाव मैदान में थे तो उन्होंने बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे स्वामी प्रसाद मौर्य के पुत्र उत्कृष्ट मौर्य को हराया था.

2017 में एक बार फिर उन्होंने इसी सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य के पुत्र उत्कृष्ट मौर्य को हराया. इस बार उत्कृष्ट मौर्य बीजेपी के टिकट पर हारे थे.

अखिलेश यादव भूल गये कि 2017 में बीजेपी की आंधी में एनडीए को यूपी में चार सौ तीन में से सवा तीन सौ सीटें मिली थीं लेकिन डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय ने तब भी जीत हासिल की थी.

इसके बाद 2022 में भी सपा प्रत्याशी डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय ने ऊंचाहार सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी अमरपाल मौर्य को हराकर जीत हासिल की थी.

यहां ये ध्यान में रखना ज़रूरी है कि 2012 में भले ही रायबरेली में सपा के पांच विधायक जीते हों लेकिन 2017 में रायबरेली में जीतने वाले मनोज पांडेय सपा के इकलौते विधायक थे.

दरअसल रायबरेली में डॉ. मनोज पाण्डेय ज़बरदस्त जनाधार है. उनका जन्म रायबरेली में ही 1968 में 15 अप्रैल को डॉ. रमाकान्त पाण्डेय के घर में हुआ था. मनोज कुमार पाण्डेय पोस्ट ग्रेजुएट तो हैं ही साथ ही उनके पास पीएचडी की डिग्री भी है.

अखिलेश यादव ये भूल गये हैं कि डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय सपा के गिने चुने ब्राह्मण चेहरों में से एक हैं जिनका रायबरेली के साथ साथ आस पास के जिलों में भी अच्छा असर है.

अखिलेश और उनकी पार्टी ये समझ ही नहीं पा रही कि बीजेपी लगातार अपना कुनबा और जनाधार बढ़ाने की रणनीति पर काम करती है.

अपना घर संभालने के बदले सपा के नेता इस बात के प्रचार में लगे हैं कि जब बीजेपी के पास बंपर बहुमत है तो वो दूसरी पार्टी के नेताओं को क्यों जोड़ रही है. दरअसल ये सोच और अप्रोच ही समाजवादी पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट की वजह है.

ये सोच सपा के विस्तार में तो रुकावट डाल ही रही है साथ ही उसके मौजूदा जनाधार वाले नेताओं को भी पार्टी से दूर कर रही है.

इसके साथ ही सपा से दूर जा रहे नेताओं को बीजेपी में अपना सम्मान और भविष्य सुरक्षित नज़र आ रहा है और बीजेपी भी इन नेताओं का स्वागत खुले दिल से कर रही है.

इस बारे में बीजेपी नेताओं का कहना है कि सपा को अपने घर को संभालना नहीं आया. किसी पर आरोप लगाने से पहले ये भी देख लें कि आपके घर के सदस्य क्यों आपसे भागना चाहते हैं?

अगर मनोज पांडेय की बात करें तो वो पहले से ही सपा में रहे स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं की राजनीति के विरोधी रहे हैं.

जब मौर्य हिन्दुत्व और सनातन धर्म के खिलाफ ज़हर उगल रहे थे तो मनोज पांडे सपा में रहते हुए भी स्वामी प्रसाद के बयानों पर अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे थे. उन्होंने कहा था कि अपनी राजनीति को चमकाने के लिए कोई भी नेता धर्म को निशाना न बनाए।

मनोज मानते हैं कि नेता कों किसी भी जाति और धर्म के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं है।

यूपी सरकार में बीजेपी के मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा है कि “मनोज पाण्डेय हमेशा सनातन धर्म के पक्षधर रहे हैं. राम लला के दर्शन के लिए जब प्रस्ताव आया तब वो चाहते थे कि सभी लोग दर्शन के लिए जाएं लेकिन सपा के बड़े नेताओं ने उसका विरोध किया. दयाशंकर सिंह ने कहा कि PM मोदी की नीतियों पर विश्वास कर मनोज पांडेय अपने निर्णय ले रहे हैं.”

असलियत ये है कि मनोज पांडेय के समाजवादी पार्टी से दूर होने पर उसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. ब्राह्मण वोटर्स समाजवादी पार्टी से दूरी बना सकते हैं.

विधायक मनोज पांडेय केवल रायबरेली ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में सपा के बड़े ब्राह्मण नेता के तौर पर पहचान रखते हैं. अखिलेश यादव ने इसीलिए उन्हें पार्टी का चीफ व्हिप भी बनाया था.

अब खबर है कि मनोज पांडेय भाजपा ज्वॉइन कर सकते हैं और उन्हें रायबरेली से बीजेपी का लोकसभा उम्मीदवार बनाया जा सकता है. रायबरेली के बीजेपी नेता भी मनोज पांडेय का स्वागत करने को तैयार है.

यूपी सरकार के मंत्री दिनेश सिंह ने कहा है कि भाजपा नेतृत्व जिसे भी रायबरेली से प्रत्याशी बनाएगा वो उसका साथ देंगे और रायबरेली की जनता और पार्टी के साथ मिलकर उसे तन मन धन से चुनाव लड़वाएंगे. 

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