कौशांबी-प्रतापगढ़ साधेंगे, अखिलेश और राजा भैय्या?
कौशांबी-प्रतापगढ़ साधेंगे, अखिलेश और राजा भैय्या?
लोकसभा चुनाव के लिए कुछ ही दिनों में नोटिफिकेशन जारी हो सकता है. लोकसभा चुनाव 2024 और राज्यसभा चुनाव की ज़रूरत को देखते हुए समाजवादी पार्टी एक बार फिर रघुराज प्रताप सिंह यानी राजा भय्या को अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रही है.
लगभग बीस साल तक समाजवादी पार्टी के सहयोगी रहे रघुराज प्रताप सिंह पिछले कई बरसों से अखिलेश यादव और उनकी पार्टी से दूर हैं. इस बीच उन्हें यूपी की बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ अच्छे रिश्ते बनाते देखा गया है.
लगभग छह साल पहले यानी 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव से ही अखिलेश यादव और राजा भय्या के बीच सियासी दुश्मनी चली आ रही है. 2018 के राज्यसभा चुनाव के वक्त तक सपा और बसपा के बीच 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर सहमति बनने लगी थी.
तब तक राजा भय्या सपा के सहयोगी हुआ करते थे लेकिन बीएसपी से उनकी तगड़ी दुश्मनी थी. दरअसल बीएसपी की मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए ही यूपी में राजा भय्या के खिलाफ पोटा का मुकद्दमा दर्ज किया गया था.
यूपी में मायावती के शासन के दौरान ही राजा भैया और उनके पिता को जेल भी काटनी पड़ी थी.
बीएसपी से पुरानी दुश्मनी की वजह से ही 2018 में राजा भय्या बीएसपी के राज्यसभा उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं करना चाहते थे. लेकिन अखिलेश यादव चाहते थे कि राजा भय्या बीएसपी के उम्मीदवार का समर्थन करें.
इसके लिए अखिलेश ने एक मीटिंग बुलाई थी जिसमें वो अपने साथियों से बसपा के उम्मीदवार को जिताने के लिए वोट करने की अपील कर रहे थे. इस मीटिंग में राजा भैया भी शामिल हुए थे.
हालांकि अखिलेश के सामने तो राजा भय्या ने बीएसपी उम्मीदवार को वोट करने से इनकार नहीं किया था लेकिन जब वोटिंग का असली वक्त आया तो उन्होंने BSP उम्मीदवार को वोट न करके BJP उम्मीदवार को वोट दे दिया था. नतीजा ये हुआ कि बसपा प्रत्याशी राज्यसभा चुनाव हार गया था.
इस एक मामले ने अखिलेश और राजा भय्या की सियासी दोस्ती को सियासी दुश्मनी में बदल दिया. अखिलेश यादव राजा भय्या से इतने नाराज़ थे कि उन्होंने 2022 में प्रतापगढ़ में कुंडा विधानसभा सीट से राजा भय्या के खिलाफ अपना उम्मीदवार भी उतार दिया था.
जबकि इससे पहले सपा… कुंडा में राजा भय्या के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारती थी. सपा ने कुंडा में अपना उम्मीदवार बनाया भी उस गुलशन यादव को था जो
राजा भय्या का ही करीबी था.
2022 के इस चुनाव में चुनावी रैलियों में दोनों नेताओं ने एक दूसरे पर खूब तीखे जुबानी हमले भी किए थे. खासतौर पर अखिलेश यादव ने प्रतापगढ़ में ही खड़े होकर राजा भय्या को पहचानने से इनकार कर दिया था.
जब उनसे राजा भय्या को लेकर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने पूछा था कि कौन राजा भय्या.
इसके अलावा कुंडा में राजा भय्या के खिलाफ़…और गुलशन यादव के समर्थन में जनसभा को संबोधित करते हुए अखिलेश ने ये भी कहा था कि बताओ कुंडा के लोगों, यहां पर जो लगातार जीत रहे हैं, उनके लिए कुंडी लगाओगे कि नहीं लगाओगे? ऐसी कुंडी लगाना कि दोबारा कुंडी न खोल पाएं।’
यानी अखिलेश यादव कुंडा में राजा भय्या के कुंडी लगाने की बात कर रहे थे. इसी के जवाब में राजा भय्या का भी बड़ा ही तीखा और तगड़ा जवाब आया था.
राजा भय्या ने कहा था कि ‘मैं किसी पर निजी टिप्पणी नहीं करता। हमेशा मंच की मर्यादा बनाकर रखता हूं. किसी के ऊपर हल्की बात कभी नहीं की।
राजा भय्या ने अखिलेश के लिए कहा था कि एक नेताजी ने कहा कि कुंडा में कुंडी लगा देंगे या कुंडा को कुंडी बना देंगे तो हम कहते हैं कि धरती पर अभी कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ है जो कुंडा में कुंडी लगा दे। कुंडा कुंडा ही रहेगा.
ये बात राजा भय्या ने मुलायम सिंह यादव के प्रति पूरा सम्मान रखने के बावजूद उनके बेटे अखिलेश यादव के खिलाफ कही थी.
अखिलेश के साथ राजा भैया के रिश्ते भले ही कड़वे रहे हों, लेकिन शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ उनके संबंध हमेशा बेहतर रहे.
अखिलेश की नाराज़गी के बावजूद राजा भैया… मुलायम सिंह यादव से मिलने जाते रहे. वो कई बार कह चुके हैं कि मायावती सरकार के समय उनके खिलाफ पोटा लगाया गया था और बाद में मुलायम सिंह की सरकार ने राजा भैया पर लगा पोटा का केस हटाया था.
यानी उस मुश्किल समय में मुलायम ने उनका साथ दिया था.
इस बात को अखिलेश यादव भी अच्छी तरह समझते हैं कि राजा भय्या के मन में मुलायम सिंह यादव और सपा को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर है. और इसी वजह से अखिलेश ने इस संभावना को तलाशने की कोशिश की है कि क्या राजा भय्या के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर कोई सहमति या समझौता हो सकता है.
इसके साथ ही अखिलेश फरवरी 2024 के राज्यसभा चुनाव को लेकर भी राजा भय्या का समर्थन चाहते हैं. आप जानते हैं कि यूपी से भरी जाने वाली राज्यसभा की 10 सीटों पर चुनाव होना है.
बीजेपी ने 10 सीटों में से 8 पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि सपा ने 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
सात सीटों पर बीजेपी और दो पर सपा उम्मीदवारों की जीत तय है लेकिन बीजेपी ने अपना आठवां उम्मीदवार उतारकर सपा की धुकधुकी बढ़ा दी है.
सपा को अपने तीनों उम्मीदवारों को जिताने के लिए फर्स्ट प्रेफ्रेंन्स के 111 वोटों की ज़रूरत है. सपा के पास अपने फिलहाल 108 विधायक हैं. इन 108 में से एक विधायक और अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने भी सपा उम्मीदवार को वोट देने से इनकार कर दिया है.
पल्लवी को हटा दें तो सपा के पास 107 विधायकों का समर्थन बचता है. इसके अलावा कांग्रेस के दो विधायक हैं जो सपा का समर्थन कर सकते हैं. तब भी सपा के पास कुल 109 विधायकों का समर्थन होगा.
यानी राज्यसभा के अपने तीनों उम्मीदवारों को जिताने के लिए सपा को दो और विधायकों का समर्थन चाहिए. ये दो विधायक उसे राजा भैय्या की पार्टी से मिल सकते हैं.
रघुराज प्रताप सिंह की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के टिकट पर कुंडा विधानसभा सीट से वो खुद जीते हैं जबकि बाबागंज विधानसभा सीट से उनके करीबी विनोद सरोज विधायक हैं.
अगर दो विधायकों वाली राजा भैया की पार्टी सपा का समर्थन कर देती है तो उसके पास फर्स्ट प्रेफ्रेंस के 111 वोट हो जाएंगे और वो तीसरी राज्यसभा सीट भी आसानी से जीत जाएगी. यानी अगर राजा भैया की पार्टी सपा का समर्थन कर दे तो बिना बसपा और बिना पल्लवी पटेल के वोट के भी सपा तीनों सीटें जीत जाएगी.
अब सवाल है कि क्या राजा भय्या की पार्टी जनसत्ता दल के दो विधायक सपा का समर्थन करेंगे. तो इसी के लिए अखिलेश यादव ने अपने प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को राजा भय्या से बातचीत करने के लिए उनके घर भेजा था.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राजा भैया से मुलाकात के दौरान नरेश उत्तम पटेल ने उनकी अखिलेश यादव से फोन पर बात भी कराई थी.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि फोन पर राजा भैया ने कहा कि उनके लिए समाजवादी पार्टी पहले हैं क्योंकि राजनीति के 28 सालों में से 20 साल उन्होंने सपा के साथ रहकर गुज़ारे हैं. उनके लिए सपा कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है।
हालांकि इसके बाद बीजेपी ने भी अपने प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को यूपी सरकार के एक मंत्री के साथ राजा भय्या से मिलने उनके घर भेजा था.
बीजेपी नेताओं की राजा भय्या से इस मुलाकात के बाद अखिलेश यादव ने भी खुलकर राजा भय्या को साथ आने का ऑफर दिया है. जब उनसे राजा भय्या को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जो भी आना चाहे उसका स्वागत है.
अखिलेश ने कहा कि बीजेपी ने अपने हर सहयोगी को 2-2 मंत्री पद देने का ऑफर दिया है जो वो दे नहीं सकती इसलिए बीजेपी के नाराज़ सहयोगियों का समर्थन सपा ले लेगी.
अगर राज्यसभा चुनाव में राजा भय्या सपा का साथ देते हैं तो दोनों दलों के लोकसभा चुनाव 2024 में भी साथ आने की संभावना बन सकती है. ये समझौता दो लोकसभा सीटों को ध्यान में रखकर हो सकता है. एक कौशांबी और दूसरी प्रतापगढ़.
इन दोनों सीटों पर राजा भय्या की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का अच्छा खासा असर है. 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की कौशांबी लोकसभा सीट पर राजा भय्या के उम्मीदवार शैलेंद्र कुमार को डेढ लाख से भी ज्यादा वोट मिले थे.
हालांकि ये सीट बीजेपी ने 3 लाख 83 हजार से ज्यादा वोट पाकर जीती थी लेकिन सपा और बसपा मिलकर भी इस सीट पर दूसरे नंबर पर रहे थे. सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी को लगभग तीन लाख चवालीस हजार वोट मिले थे. जो बीजेपी प्रत्याशी से 39000 कम थे. यानी अगर सपा और बसपा को कौशांबी में राजा भय्या का साथ मिला होता तो बीजेपी ये सीट हार सकती थी.
खास बात ये भी है कि जनसत्ता दल के जो दो विधायक हैं उनकी विधानसभाएं कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में ही आती हैं. ये दोनों सीटें हैं कुंडा और बाबागंज. कुंडा सीट से तो राजा भय्या खुद सात बार से विधायक बनते आ रहे हैं.
ऐसे में अगर राजा भय्या की पार्टी कौशांबी सीट पर 2019 की तरह अकेले चुनाव लड़ती है तो उसका फायदा सीधे बीजेपी को मिलेगा. और अगर वो सपा के साथ आ जाते हैं तो सपा के वोट बढ़ने तय हैं.
कौशांबी पर सपा का ध्यान इसलिए भी है क्योंकि जो पल्लवी पटेल सपा से नाराज हैं वो इसी लोकसभा क्षेत्र की विधायक हैं. उनके अलावा मंझरपुर से सपा विधायक इंद्रजीत सरोज भी पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं.
इसके अलावा राजा भय्या के दबदबे वाली एक और लोकसभा सीट है जिस पर नज़र रखने की ज़रूरत है. वो सीट है प्रतापगढ़ की. 2019 में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट बीजेपी ने एक लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी. तब राजा भय्या के उम्मीदवार अक्ष्य प्रताप सिंह को भी लगभग 47000 वोट मिले थे. यानी अगर इस सीट पर राजा भय्या समर्थन कर दें तो सपा के वोट यहां भी बढ़ सकते हैं.
एक चर्चा ये भी है कि राजा भय्या खुद प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. इसीलिए उनके सपा के साथ जाने की चर्चाएं तेज़ हैं. हालांकि 2024 में बीएसपी सपा के साथ नहीं है इसलिए ये सारे समीकरण उलट भी सकते हैं.