केंद्र में मंत्री बनेंगे जयंत? अखिलेश से मोहभंग
केंद्र में मंत्री बनेंगे जयंत?
अखिलेश से मोहभंग?
बिहार में जेडीयू, पंजाब में आम आदमी पार्टी, और बंगाल में टीएमसी के बाद अब उत्तर प्रदेश में आरएलडी ने इंडी गठबंधन को तगड़ा झटका देने की तैयारी कर ली है. हो सकता है कि बहुत जल्द आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी नरेंद्र मोदी के मंत्रीपरिषद का हिस्सा बने दिखाई दें.
अगर पिछले 2 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो आरएलडी के खाते में केवल ज़ीरो बटा सन्नाटा दिखाई देता है. ना तो वो 2014 में कोई सीट जीत पाई और ना ही 2019 में.
19 जनवरी को अखिलेश और जयंत दोनों ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर अलायंस का एलान किया था. दोनों ने फोटो पोस्ट कर अलायंस की पुष्टि कर दी थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच सहमति बनी थी कि आरएलडी 7 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
उस सहमति के बाद बीस दिन में ही हालात ऐसे हो गये हैं कि 7 फरवरी को अखिलेश यादव को ये कहना पड़ा कि उन्हें उम्मीद है कि जयंत उन्हें छोड़ कर नहीं जाएंगे.
जयंत के बीजेपी नेताओं से मुलाकात की खबरों के बीच 7 फरवरी को अखिलेश ने कहा कि जयंत सुलझे हुए इंसान हैं, राजनीति को समझते हैं, और किसानों के लिए लड़ाई को वो कमज़ोर नहीं होने देंगे.
अखिलेश ने ऐसी अपील इसलिए की है क्योंकि जयंत चौधरी ने अखिलेश से हुए समझौते के बाद चल रही चुनावी तैयारियों के कार्यक्रम रद्द कर दिये हैं. जयंत चौधरी ने पार्टी के दो कार्यक्रम रद्द किए. जिसके बाद उनके एनडीए के साथ जाने की अटकलें और तेज हो गईं हैं.
पहला कार्यक्रम 12 फरवरी को छपरौली में होना था, जहां उनके पिता अजीत चौधरी की जयंती पर उनकी 12 क्विंटल वजन की आदमकद प्रतिमा का लोकार्पण होना था. जयंत ने इस कार्यक्रम को टाल दिया है.
इसके अलावा दूसरा कार्यक्रम मथुरा में होना था युवा सम्मेलन के रूप में. इस कार्यक्रम को भी टाल दिया गया है
खबर ये भी है कि जयंत की बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं से मुलाकात भी हो चुकी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जयंत ने बीजेपी के सामने सात लोकसभा सीटों का प्रस्ताव रखा है। रालोद नेताओं की तरफ से दावा किया गया है कि लोकसभा की चार और राज्यसभा की एक सीट पर बात तय हो गई है। इनमें कैराना, मथुरा, बागपत और अमरोहा लोकसभा सीटें हैं। ये भी संभावना है कि यूपी सरकार के विस्तार में आरएलडी को एक मंत्री पद भी मिल सकता है.
एक दूसरी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि बीजेपी और रालोद के बीच केंद्र सरकार में एक मंत्री पद और दो लोकसभा सीटों पर सहमति बनने की संभावना है.
मोदी सरकार में जयंत चौधरी की पार्टी की तरफ से एक राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया जा सकता है.
अब सवाल उठता है कि जब एनडीए… अखिलेश से कम सीटें ऑफर कर रहा है तो फिर जयंत को क्या ज़रूरत पड़ी है एनडीए में जाने की. इसके जवाब में आती है अखिलेश की वो चाल जिसकी वजह से जयंत समझौता हो जाने के बावजूद बिदक गये हैं.
दरअसल हुआ ये है कि अखिलेश ने जयंत की पार्टी को सात लोकसभा सीटें लड़ाने का वादा तो किया लेकिन उसमें ये भी जोड़ दिया कि तीन से चार लोकसभा सीटों पर
आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे. इन 3-4 सीटों में भी मुज़फ्फरनगर, बिजनौर, और कैराना… वो तीन सीटें हैं जो आरएलडी के दबदबे वाली मानी जाती रही है.
खबर है कि अखिलेश कैराना से पूर्व सांसद तबस्सुम हसन की बेटी इकरा हसन,मुजफ्फरनगर से पूर्व सांसद हरिंदर मलिक, और बिजनौर से रुचि वीरा को लड़ाना चाहते हैं.
ये वो सीटें हैं जिन पर न सिर्फ़ आरएलडी का दावा है बल्कि वोट बैंक के लिहाज़ से भी यहां आरएलडी मज़बूत है. इन सीटों पर समाजवादी पार्टी न सिर्फ अपने कैंडिडेट उतारना चाहती है बल्कि उसके नेताओं ने यहां चुनावी तैयारी भी शुरू कर दी है.
लखनऊ में जब एसपी और आरएलडी के बीच समझौता हुआ था तो उस बैठक में एसपी के महासचिव और पूर्व सांसद हरिंदर मलिक भी मौजूद थे. लखनऊ से लौटने के बाद ही उन्होंने मुजफ्फरनगर से चुनाव की तैयारी शुरू कर दी और ये मैसेज दिया कि उनके लिए सीट अखिलेश यादव ने फाइनल कर दी है.
मुज़फ्फरनगर में मलिक की सक्रियता को देखकर राष्ट्रीय लोकदल नेताओं में बैचैनी बढ़ गई और उन्होंने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर करना शुरू कर दिया। पूर्व मंत्री योगराज सिंह समेत कुछ नेताओं ने मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव लड़ने की दावेदारी ठोक दी और उन्होंने भी चुनावी तैयारी शुरू कर दी. बस यहीं से दोनों पार्टियों के समझौते में आग लगनी शुरू हो गई और जयंत चौधरी पर उनकी ही पार्टी के नेताओं का दबाव बढ़ने लगा. कई नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि अगर जयंत की पार्टी पश्चिमी यूपी में चुनाव नहीं लड़ेगी तो क्या बंगाल में चुनाव लड़ने जाएगी.
दूसरी तरफ सपा के लिए भी मुजफ्फरनगर और कैराना सीटें महत्वपूर्ण हैं. दरअसल हरिंदर मलिक सपा के पास अकेले बड़े जाट नेता हैं, जो खुद विधायक और सांसद रहे हैं। उनके बेटे पंकज मलिक मौजूदा समय में सपा से विधायक हैं। हरिंदर मलिक चुनाव लड़ने पर अड़े हुए हैं और उनको अखिलेश की पार्टी किसी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहती।
इसके अलावा कैराना में मुनव्वर हसन परिवार कई दशकों से चुनाव लड़ता आ रहा है और समाजवादी पार्टी की राजनीति भी इसी परिवार पर आकर टिकती है। विधानसभा चुनाव के समय से ही कैराना विधायक नाहिद की बहन इकरा लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। इस परिवार को टिकट के लिए मना करना भी अखिलेश के लिए मुश्किल भरा काम है।
न अखिलेश अपने नेताओं को नाराज़ करना चाहते हैं और न जयंत ऐसा कर पाने की स्थिति में हैं. इससे पहले जयंत के सामने यही स्थिति 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बनी थी.
साल 2022 विधानसभा चुनाव में भी सपा और रालोद साथ थे. इस चुनाव में RLD 33 सीटों पर लड़ी और 9 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी.
अखिलेश यादव ने आरएलडी को जो सीटें दी थीं उनमें से कई पर अपनी पार्टी के नेताओं को टिकट दिला दिया था.
आरएलडी के मौजूदा 9 विधायकों में से तीन- मीरापुर विधायक चंदन चौहान,
पुरकाजी के एमएलए अनिल कुमार
और सिवाल खास के विधायक गुलाम मोहम्मद टिकटों के ऐलान के समय तक समाजवादी पार्टी में थे.
दूसरी पार्टी के नेताओं को रालोद का टिकट मिलने पर आरएलडी नेताओं ने उस समय भी एतराज जताया था लेकिन जयंत चौधरी किसी तरह अपने नेताओं को समझाने में कामयाब रहे थे। 2022 में टिकट ना मिलने से रुठे नेताओं को मनाने के लिए उस वक्त ये वादा भी किया गया था कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में मौका दिया जाएगा.
जयंत चौधरी जानते हैं कि अगर इस बार भी वही स्थिति बनती है तो उन्हें पार्टी नेताओं की भारी नाराज़गी का सामना पड़ सकता है. हो सकता है कि इस बार पार्टी नेताओं की नाराज़गी उनके काबू से बाहर हो जाए. शायद इसी वजह से उन्होंने एनडीए में जाने का मन बना लिया है.
पश्चिमी यूपी के सियासी गणित की बात करें तो यहां 27 लोकसभा सीटें हैं. 2019 में इनमें से 19 BJP, चार एसपी, और 4 बीएसपी जीती थी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और उसका खाता नहीं खुला था.
2019 के आम चुनाव में जयंत चौधरी की पार्टी RLD ने सपा-बसपा के साथ गठबंधन में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीनों सीटों पर दूसरे नंबर पर आई थी. जयंत चौधरी अपने पुश्तैनी क्षेत्र बागपत से चुनाव लड़े और बीजेपी के डॉ. सतपाल मलिक से 23 हजार वोटों से हार गए थे.
मथुरा से आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमा मालिनी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
इसी तरह जाटों के लिए बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली मुजफ्फरनगर सीट से अजित सिंह पहली बार चुनाव लड़े थे और बीजेपी के संजीव बालियान से 6500 से ज्यादा वोटों से हार गए थे. अजित और जयंत चौधरी को सपा-बसपा के अलावा कांग्रेस का भी समर्थन मिला था. लेकिन फिर भी उन्हें जीत नहीं मिल पाई थी. ये लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव था, जब चौधरी परिवार को खाली हाथ रहना पड़ा था. अब जयंत को उम्मीद है कि बीजेपी के साथ जाकर उनकी पार्टी का सूखा खत्म हो सकता है.